ज़िंदादिली

कुछ किरदार ओस की बूंदों के जैसे होते हैं, सूरज चढ़ते-चढ़ते गायब हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही थी वो,....

KAHAANI

Yamini

10/8/20251 min read

Silhouettes of people dancing under blue lights.
Silhouettes of people dancing under blue lights.

इस कहानी में अगर मैंने उसका ज़िक्र नहीं किया तो कहानी में जैसे ज़िंदादिली ही नहीं डाली। कुछ किरदार ओस की बूंदों के जैसे होते हैं, सूरज चढ़ते-चढ़ते गायब हो जाते हैं। कुछ ऐसी ही थी वो, मेरी ढेरों मोहब्बतों में से एक, वैसे तो मैंने बहुतों से आशिकी निभाई लेकिन उसने मुझसे निभाई थी। उसके लिए मेरी भावनाएं, उसकी बातों पर नहीं बल्कि उसकी हरकतों पर आधारित थी।

मुझ जैसे जवानी में बुढ्ढे हो चुके लोगों की सबसे बड़ी परेशानी होती है “चटक“। चटक मतलब आज के ज़माने के अनुसार रंगा-ढंगा इंसान। बाकि सब तो मेरे बारे में कुछ ऐसा ही कहते हैं लेकिन उसने नहीं कहा। उसे मेरे अंदर वो चटक दिखी जो शायद ही किसी और ने देखी। आपको पता है?, इस चटक के भी कई आयाम होते हैं और उनमे से ही किसी एक आयाम को उसने देखा था। और शायद उसी चटक से, उसको भी प्यार हो गया था।

क्लब, पब, लाउंज बार और डिस्को के बीच का फ़र्क़ ना तो मुझे तब पता था और ना आज पता है। जो भी एक-दो बार पहुंचना हुआ तब मुझे वो जगहें भायी ही नहीं। और एक दिन वो साथ में थी, हाई वॉलयूम म्यूज़िक से होता सिरदर्द, ज़मीन और दीवारों पर तेज़ी से रेंगती लाल-हरी लाइट्स और घुप अँधेरा, जिसमे कोई भी ठीक से नहीं दिखता था। उसके ऊपर सोने पे सुहागा थे, ढेरों मस्तमौला नाचते लोग। किसी के कदम लड़खड़ाते तो कभी इश्क़ की खुमारी में किसी की बिगड़ती नीयत नज़र आ जाती। हाथ में बीयर की बोतल और सामने सजे मंचूरियन, विदेशी पकोड़े और ना जाने क्या-क्या। फ्लेवर्ड (flavored) हुक्के के कश लेते लोग, रंगीन मिजाज़ी थी इस माहौल में, पर ये सब बड़ा बेग़ाना सा लग रहा था। वैसे तो आशिकी, म्यूज़िक, मदहोशी, सॉफ्ट/हार्ड ड्रिंक और लाइट्स मुझे भी पसंद हैं लेकिन ये मेरे वाला तरीका नहीं था। इन सबके बीच से उठकर मैंने एक अलग कोना पकड़ लिया और वहाँ जाकर एक कुर्सी भी लपक ली।

वो सबके बीच नाच रही थी। हमारे और भी दोस्त थे वहाँ। मेरी नज़रें सब पर जाती और हैरत-अंगेज़ मंजर देखतीं। मुझ जैसे लोग इस वाली दुनिया से बिलोंग(belong) नहीं कर पाते। थोड़ा बीयर का नशा और उसके बाद पेशाब करने की तीव्र इच्छा से मेरे पसीने छूटे जा रहे थे। एक अजीब सी कैफ़ियत थी। बहुत सालों बाद पता चला कि उस बला को एंगज़ायटी(Anxiety) कहते हैं। खैर रेस्ट-रूम ढूंढकर प्रकृति की आवाज़ को भी सुना और काम निपटाया और फिर से अपना कोना पकड़ लिया।

इतना कुछ देखते, महसूस करते हुए, ये एहसास नहीं हुआ कि उस अँधेरे और जगमगाहट के बीच झूमते हुए माहौल में एक ऐसा इंसान भी था, जिसकी नज़रें मुझ पर भी थीं। मुझे लगता है कि दुनिया में सबसे ख़ास लोग वे होते हैं जो सबके सामने बिना झिझके आपका हाथ थामने की हिम्मत रखते हों। जिनका इश्क़ ही नहीं बल्कि दिल भी ज़िंदा हो। ज़माने के साथ चलकर भी अलग होने की खासियत और अपनी मोहब्बत का साथ निभाने की बेबाक नीयत उन्हें सबसे अलग बनाती है। उन्हें ज़िंदादिल बनाती है।

उस माहौल से ऊबकर मैंने अपनी संगत अपने फ़ोन में ढूंढने की कोशिश की। लेकिन एक किताब, कम रोशनी और शोर का मेल-जोल बड़ा अजीब होता है। ठीक वैसा जैसे रेलवे-स्टेशन के स्पीकर से निकलती आवाज़ जो सुनाई तो पड़ती है लेकिन ठीक से समझ नहीं आती। और फिर अचानक उसने आकर मेरे हाथ से फ़ोन छीन लिया और मेरा हाथ कसके पकड़कर खींच लिया और सबके बीच ले गई। उस भीड़ में, संकुचाहट, तेज़ सिरदर्द, बेचैनी और मेरे हाथों को हवा में उठाते उसके हाथ। आँखों पर बराबर चुभती रोशनी से होती मेरी बौखलाहट को देख वो समझ गई कि मैं ठीक नहीं हूँ।

उसके हाथ की पकड़ ढीली पड़ी और मुझे मौका मिला फिर से भाग जाने का लेकिन वो भी ढीट थी। मेरे पीछे-पीछे आ गई और सबसे अलग-थलग, मेरे पास खड़े होकर नाचने लगी। उस दिन मुझे पता चला कि किसी की मौजूदगी और किसी के साथ होने के बीच कितना फ़र्क़ होता है। ज़रूरी ये नहीं कि वो कौन है, कहाँ से है और उसका नाम क्या है। लेकिन वो क्या है और आपके लिए क्या करता है, ये जानना कई बार ज़िन्दगी को नए आयाम दे देता है। ज़िन्दगी में मोहब्बत चाहे पूरी हो या अधूरी, वो कुछ-न-कुछ ज़रूर सिखाती है। और मेरी इस वाली मोहब्बत से मैंने सीखी थी, ज़िंदादिली, बेपरवाही और साथ निभाने की बेबाक नीयत।